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भ्रम / बहादुर पटेल

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यह जो समय का एक लम्बा-सा हिस्सा
दूर तक दिखाई दे रहा है
और वह छोर जैसा वहाँ कुछ दिखाई दे रहा है
हम उस तक पहुँचना चाहते हैं
सचमुच भ्रम है

आप चाहें कि वहाँ पहुँच कर
खोल दें फन्दा और दिख जाए सब कुछ साफ़-साफ़
भ्रम एक ऎसा अदृश्य द्वार है
जिसके आर-पार देख पाना
ठीक उतना ही कठिन है
जितना कि एक बेईमान आदमी के भीतर
देख पाना बेईमानी

अब आप एक पैमाना तैयार करेंगे
जिससे सब-कुछ माप लेना चाहें
पर कुछ ऎसे क्षण होते हैं
जिनके भीतर इतना ताप होता है
कि आप उसकी पहुँच से दूर रह जाते हैं

वैसे देखा जाए तो लड़ाई शुरू होती है
तो उसका कोई छोर हमारी पकड़ में नहीं आता
भ्रम पैदा होता है छोर तक पहुँचने का
इस तरह भ्रम के संसार में पड़ते हैं हमारे क़दम।