Last modified on 5 फ़रवरी 2009, at 00:27

उपालम्भ / श्रीनिवास श्रीकांत

प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:27, 5 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीनिवास श्रीकांत |संग्रह=घर एक यात्रा है / श्...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

एक
ब्रह्माण्डीय खगोल-भौतिकी का सार
समझाया था
विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न
पयगम्बर ने तुम्हें
जो अल्लाह ने
स्वयं कह सुनाया था उसे
और उसने कै़द कर लिया था
सारा ज्ञान
एक अदभुत लाक्षणिक रूपक की शक्ल में
तब सापेक्ष ब्रह्म
एक घने दरख़्त की तरह
नज़र आया था तुम्हें
और तुम्हारे बाद के
मौलाओं को
पर
वे आये थे तब
जब सजने लगे थे धर्मसंघ
धर्म हो गया था
सम्प्रदायों में विभाजित
जबकि रहना चाहिए था उसे
उभयनिष्ठ-चिन्मय-पाथेय बनकर

अफ़सोस कि आदमी की ऐहिक
स्वार्थपरता के लिए
तुमने किये धर्म के कई स्पान्तर
एक दूसरे से अलग
एक दूसरे को काटते
जबकि उन रेगिस्तानों में था
बहुत कुछ
एक दूसरे सा
एक समान

बालू के
अपनी ही नाभि के गिर्द घूमते
वे मरीचिकाये विस्तार
दूर-दूर भागते
नखलिस्तान के भ्रम
और कहीं अपार आकाश के नीचे
अटखेलियां करता समुद्र

तुम आधे मन से ही जान पाये थे
इनकी सिखलायी
कि अपनी अलग-अलग
मायावी भंगिमाओं में
क्या कहते रहे हैं वे

मोहम्मद
यानी वह था
एक नये इतिहास की शुरूआत
ऊंटवान क़बीलो का रहबर
अल्लाह के दिये
साझे आसमान के नीचे
उत्रोत्तर फलते-फूलते
परमपावन परिवार की कल्पना
मनुजादों के लिए
कूटबद्ध सा विधिविधान
कुफ्र के अधोलोक में
एककाएक नूर का पैदा होना
जहां सबकुछ हुआ
एक करिश्में की तरह
अधिभौतिक परिमण्डलीय रहस्य का खुलता
सचमुच
प्रमथ्युही था वह
जो लाया था
तुम्हारे लिये
स्वर्ग से अग्नि
अल्लाह के फरिश्ते ने ही
जगाया था उसे
ंनिर्धूम की अमरिती गगन गुफा में
मक्का की
जमीन से ऊपर उठी पहाड़ी पर
जब था वह गहन समाधि में लीन
इलहाम और ईश्वरीय
आवाज़ का तलबगार
दुनियावी रहस्यकार का मुरीद
तुरीय में ही समेट लिया था उसने
ब्रह्माण्ड का सारा ज्ञान

वह था सचमुच
ईश्वर का दिया
एक नादवान दरख़्त
सातों आसमान का वह नायाबतोहफा
जिसके आने से
ज़राफों में पड़ गयी थी जान
और रेगिस्तानों के उजाड़
और खौफ़जदा अकेलेपन में
खुलने लगा था
कर्बलाया आसमान
झिर्रियों से जिसकी
नज़र आने लगी थी
खुदाई रौशनी
और उसका
विस्मयविमुग्धकारी मंज़र

पर
अपने वर्चस्व के लिये
हिंसा को बनाया
तुमने हथियार
अल्लाह को दिया चकमा
दोस्तों से की दगा
खेला एक भयानक खेल
खैबर गिरिसंकट तक
और उसके आगे भी
तुम्हारे तुर्क-मंगोल अश्वों ने
उड़ाये धूल के गुब्बार
दूसरों को बताते रहे काफ़िर
खुद तौला तुमने कुफ्र
मानवीय इतिहास के हर मोड़ पर
करते रहे शक्ति-संधान तुम

माँ पृथ्वी की नाल से कटे
खोखला कर दिया तुमने
नबीयत की जड़ों को
जिस पर टिका था
इन्सान का आदिम दरख्त
वक्त के हर रूझान से लड़ता

निश्चय ही
कितने वर्गलाये गये हो तुम
कितने भटकाये गये हो
अपने अन्दर
जहां खुल रहा है
इतिहास के एक काले पृष्ठ की तरह
नागफनियों का दहशत भरा
असमापनीय मरूखण्ड
 अर्धचेतना की तुम्हारी
जमीन पर बिछता।


दो

तुम मध्यपृथ्वी के आतताइयों/
बर्बर हुणों
युद्धमत्त मंगोलों का
बने रहे सदियों शिकार
दस्युआंधियों के आगे
लेट गये तुम
लचीली खजूरों की मानिन्द
तुमने बनाये
मरूओं में सजीव कल्पनालोक
क्या क्या नहीं सहा तुमने साथ-साथ

दब गये रेत के ढूहों में
और गुज़र गया
तुम्हें गु़ब्बारों की तरह उड़ाता
काल का वृहदाकार जिनी
जो तुम्हें लगता था
करेगा बहुत कुछ
अपने तिलस्म से तुम्हें
कर देगा मालामाल
तुम जान लोगे
कभी न देखी
एक अजनबी दुनिया का
अदभुत रहस्य
और बन्द कर लोगे
उसके हज़ार-हज़ार
परदर्शी बिम्बों को
अपनी-अपनी हुनरमन्द
बोतलों में
पर तुम नहीं कर पाये कुछ भी
अपनी ही कपोल कल्पनाओं से
हो गये परास्त

पहले होते थे तुम
अपने-अपने क़बीलों को
मंजिल की ओर रवां करते
ऊंट पैरों पर सफर करते थे तुम्हारे
घुमन्तु कारवां
धरे कंधों पर घर
रात होती तो
तन जाते तुम्हारे तम्बू
किसी कस्बे के करीब
रैन-बसेरे को मिल जाती तुम्हें
कोई न कोई परीजा़द सराय
और किस्सागो
काफ़िलावरों की अजीबोग़रीब कहानियां
जो कभी न होती समाप्त
तुम्हारी ही यात्राओं की तरह
अनन्त
सपाट ओर रहस्य भरीं

अब इस आपात सदी में भी तुमने
कर दिया है
नबियों की छवि को बदरूप
जो तुम्हारे अन्दर के जल में
देती थीं दिखाई दिव्य और आसमानी
वह देते देते रहे थे तुम्हें
आखिरी सांस तक
इसलाह
नवाज़ते रहे इलाली फरमानों से
तुम थे तब
छोटी-छोटी मस्ज़िदों के गुम्बद
चलती-फिरती खामोश इबादत गाहों में
जपे जाते माला के मनके

ऐसे में शैतान सचमुच था
एक बड़ा खतरनाक खलनायक
इन्सानी तवारीख़ में जीता रहा रूहपोश
उसका नकाब
उसकी पर्दादारी
थी एकसिलसिलेवार साज़िश
यानी
आदमी जब होता है बेपरवाह
अपने इच्छासुख में डूबा
वह स्याहपोश चलता है
अपनी तेंदुआ चाल
निस्तब्ध में
शतिर शिकारी की तरह सरकता
चरमसाध्य हिंसा को बनाता कलात्मक
तुम्हारे खून में रिसता
ज़हरीले आसव की तरह
तुममें भर देता रफ्ता-रफ्ता
जातिहन्ता जलन

धर्म के नाम पर तुम्हीं को
हाँ
तुम्हीं को
बनाया उसने तालिबान
यानी एक मोहरा
शतरंज की मारक चालों में घिरा
अब अगर फिर तुम इतने-इतने बवण्डरों
इतनी-इतनी आगज़नियों
जनसंहारों
और वक्त की कब्र में
दफनाई दोस्तियों के बाद
जगे हो
तो एक चतुर शिकारी की तरह
अपनी आस-पास की खोहों पर
रक्खों नज़र
                शीत निद्रा से फिर न कहीं जग जाएं
आस्तीनों के साँप
यह न समझो
कि तुमने कर दिया है पूर्णाहुत
नागयज्ञ
कर दिया है नेस्तोनाबूद
सरिसृपों का मिथकीय षड़यन्त्र।