Last modified on 5 फ़रवरी 2009, at 01:15

हद / लीलाधर जगूड़ी

92.243.181.53 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 01:15, 5 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKRachna |रचनाकार=लीलाधर जगूड़ी |संग्रह = घबराये हुए शब्द / लीलाधर जगूड...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

क़सम खाए बिना
जहाँ किसी बात को सच न माना जाए
और उसके बाद भी
सचाई सन्दिग्ध हो

जहाँ क़ानून को भी यक़ीन न हो
और अपराधी को भी
वहाँ घबराना स्वाभाविक है
तब तो और भी ज़्यादा
जब कोई हद हो
जैसे कि- मौत।