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क्षणिकाएँ / रंजना भाटिया

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1. गूंगी

मेरी आवाज़
अब ख़ुद
मुझसे
पराई हो गयी है

इस भीड़ भरी दुनिया में
बेजान-सी हो कर
ख़ुद को ही
गूंगी कहती हूँ !!