हम सुनी सुनाई पर
यकीन नहीं करते 
कहते हैं सभी फिर भी 
यकीन करते हैं 
सुनी-सुनाई पर ही 
सुन-सुनकर 
अनसुना करना 
हमारी आदत है 
क्या इसीलिए होते हैं कान !
कान न होते 
तो भी क्या सुनते हम 
सुनकर कैसे 
अनसुना करते हम।
हम सुनी सुनाई पर
यकीन नहीं करते 
कहते हैं सभी फिर भी 
यकीन करते हैं 
सुनी-सुनाई पर ही 
सुन-सुनकर 
अनसुना करना 
हमारी आदत है 
क्या इसीलिए होते हैं कान !
कान न होते 
तो भी क्या सुनते हम 
सुनकर कैसे 
अनसुना करते हम।