धरती का सुख
जब-जब बदलता है
उसके दुख में
मनुष्य के सुख में लगती है सेंध
जानता है मनुष्य
फिर भी मानता नहीं
मानता है
धरती के दुख का उत्सव
धरती देख-देख मुस्कुराती
मनुष्य की छाती पर लोटते साँप।
धरती का सुख
जब-जब बदलता है
उसके दुख में
मनुष्य के सुख में लगती है सेंध
जानता है मनुष्य
फिर भी मानता नहीं
मानता है
धरती के दुख का उत्सव
धरती देख-देख मुस्कुराती
मनुष्य की छाती पर लोटते साँप।