Last modified on 16 फ़रवरी 2009, at 20:01

बाँस / निर्मला पुतुल

गंगाराम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:01, 16 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निर्मला पुतुल |संग्रह= }} <Poem> बाँस कहाँ नहीं होता ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बाँस कहाँ नहीं होता है
जंगल हो या पहाड़
हर जगह दिखता है बाँस

बाँस जो कभी छप्पर में लगता है तो कभी
तम्बू का खूँटा बनता है
कभी बाँसुरी बनता है तो कभी डण्डा
सूप, डलिया हो पंखा
सब में बास का उपयोग होता है।

बाँस की ख़ासियत भी अजीब है
जो बिना खाद-पानी के भी बढ़ जाता है
उसकी कोई देखभाल नहीं करनी पड़ती है
बस, जहाँ लगा दो लग जाता है

पर बुजुर्गों का कहना है कि
कुँवारे लड़के-लड़कियों को इसे नहीं लगाना चाहिए
नहीं तो हमेशा बाँझ ही रह जाएंगे।

बाँस जहाँ भी होता है
अपनी ऊँचाई का अहसास कराता है
जहाँ अन्य पेड़ बौने पड़ जाते हैं

बाँस को लेकर कई अवधारणाएँ हैं
आदिवसियों की कुछ और ग़ैरआदिवासियों की कुछ
चूँकि बाँस के सम्बन्ध में आदिवासियों की धारणा
सबसे महत्त्वपूर्ण और उल्लेखनीय है।

बाँस को लेकर कई मुहावरे हैं
जिसमें एक मुहावरा किसी को बाँस करना है
जो इन दिनों सर्वाधिक चर्चित मुहावरा है

अब इस बाँस करना में कई अर्थ हो सकते हैं
यह आदमी पर निर्भर करता है कि
इसका कौन कैसा अर्थ लेता है।

यदि मैं आपको कहूँ
आपके बाँस कर दूँगी
तो अब आप ही बताएँ कि
इसका क्या अर्थ लेंगे।