मन्दिर के प्रांगण में गाड़ते थे लोग
ऊंचा ध्वज
लम्बे ले लम्बा पूरा का पूरा देवदार
जहां-तक नज़र आएगा ध्वज
सुख शांति बनी रहेगी
जहां-तक जाएगी ध्वज की हवा
दुष्टात्माएं भाग जाएंगी
असंख्य लोग लगते थे इस काम में।
असंख्य लोग लगे यहां भी
और गाड़ा गया
लोहे के कंकरीट का दैत्य ध्वज
दूर से दिखता है यह भी
दिन में बुझा-बुझा सा रहता है
रात को छोड़ता है तिलिस्मी रोशनी।
इस तिलिस्मी रोशनी से गुड़गुड़ाता है जादू का बक्सा
बक्से से निकलते हैं
अजीबोगरीब तमाशे
जो बाँध देते हैं बच्चे बूढ़े जवान
सबको एक सम्मोहन से
सब की बुद्धि का दिमाग हो जाता है कुंद
आँखे पलक नहीं झपकतीं
भुला देता है जादू का बक्सा
आपसी प्यार, भाईचारा, मेहमानवाज़ी
कोई नहीं पूछता सुखसाँत गाँव से आये रिश्तेदार से
कोई नहीं पूछता चाय पानी दुनिया बन जाती है फानी।