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हम बरसेंगे / तुलसी रमण

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हम समुद्र को उबालेंगे
             मटके में
सब जगह
भाप ही भाप होगी

ठंडी साँस लेंगे
सर्द होगी भाप
बूँदें टपकेंगी...

तुम अपने मुँह

खुले... मगर ख़ामोश रखना

क्या हुआ
नहीं बरसे बादल
...
हम बरसेंगे

दिसम्बर,1987