Last modified on 19 फ़रवरी 2009, at 23:43

औरतें: दो / तुलसी रमण

प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:43, 19 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसी रमण |संग्रह=पृथ्वी की आँच / तुलसी रमण }} <Poem> '''...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

गाची में बाँध कर रोटियाँ
भार-भादो उतर रहीं
ऊँची-टीर से नीचे नेवल की ओर
पूछता है कोई सयाणा :
              कहाँ जा रही हैं दरातियाँ?
औरतें दरातियाँ हैं
प्रखर और चमकती हुई

काट लाएँगी नेवल की मूछें :
                  कुशा के बूटे
दयार के शुच्चे फर्श पर
           झाड़ू लगाने के लिए
और छँदड़ के किसी कोने
छिपाकर रख लेंगी
नेवल और टीर को जोडतीं
           कुछ गुच्छियाँ
वर्ष भारत जीने-मरने के लिए


गाची= कमर में बाँधने का वस्त्र, ऊँची टीर= पर्वत शिखर,नेवल= नदी तट के पास का क्षेत्र, छँदड़= ढलानदार छत में सामान की जगह

                   जुलाई 1998