देवता के आँगन में
बजता है नगारा
धीरे-धीरे धमनियों मे
उतरती ताल
अँधेरी संदूक की गंध से
निकलते वही मेळे-खेळे के कपड़े
साल में एक बार
मक्की के खेतों से गुज़रती हुई
जुट जाती वे
सारी द्कानें घूमने के बाद
बच्चों के लिए पीं-पीं
मर्दों के लिए रुमाल
और अपने लिये चूड़ियाँ खरीद कर
झूला झूलती और
जलेबी खाती औरतें
साल में एक बार