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रोटी का गीत / केशव

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क्रांति की फूलमालाएँ
मूर्तियों के गले में पहना
तुम उम्मीद करते हो
जिस सुराख में पैबंद लगाने की
उसका सुराग लगाने के लिए
उन्होंने पहले ही
छोड़ रखे हैं नकाबपोश

तुम्हारी आवाज़
एक हथियार हो सकती है तुम्हारे लिए
लेकिन उनके लिए
यह काँच का गिलास है
जिसे किसी भी वक्त तोड़ कर
बिछा सकते हैं वे
तुम्हारे ही पाँवों तले

तुम्हारे पास जितने भी सबूत हैं
उनके खिलाफ
देखते ही देखते उनका विसर्जन
कर देते हैं वे किसी संगम पर
और तुम उनकी धार्मिकता को
गंगाजल के कलश की तरह
उठाये सिर पर
प्रतिष्ठित कर देते हो
अपने पूजा गृह में
दो वक्त की रोटी के लिए
जिस सच्चाई को लेकर
दौड़ते हो संसद भवन की ओर
गोली के सामने सीना तानकर
उसे वे
अंडरवियर की तरह इस्तेमाल करते हैं

क्यों सोचते हो
कि तुम्हारे पीछे है
भूखे लोगों की ताकत
इस ताकत को
उनके भूखे कुत्ते
पल भर में तार-तार कर सकते हैं

जबड़ों से बहते खून को
भूख के लिए टॉनिक मानकर
भले ही ढोते रहो जिन्दगी को
टूटे पहिए की तरह

जब तक सच्चाई नहीं बदलेगी
मशाल में
और भूख तलवार में
मनीप्लांट
उनके ही ड्राइंगरूम में बढ़ता रहेगा.