इन तमाम लोगों के पास
जिनके साये में बैठकर
रोज़ी कमाने की मजबूरी से बँधा हूँ मैं
कुछ नहीं है शेष
सिवा सूखे चरागाहों की ओर
लौटने के
कोई भी लम्हा जो
इनके और मेरे बीच
हो सकता है एक पुल
एकाएक रेत हो जाता है
और एक गुफा से निकलकर
फौरन दूसरी गुफा में घुस जाने की
हल्की सी संभावना भी
उनकी साजिश से
तोड़ जाती है दम
चीज़ों के खो जाने का भय
इन्हें हर समय घेरे रहता है
और आदमी इनके सामने
पेपरवेट की तरह पड़ा रहता है
इन्हें जरूरत है
हर रोज एक हत्या
एक बलात्कार की
और गुंजाइश रहती है
एक मरी हुई बात की
अपनी जरूरत और गुंजाइश के
खड़े जल में मुझे
डुबकी लगवाने की साजिश में संलग्न हैं
उन्हें नहीं पता कि जिसे वे
मेरी मजबूरी समझते हैं
वह एक चिंगारी भी हो सकती है.