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अँधी मछली / केशव

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एक आवाज़
सूखे पत्ते की तरह
लड़खड़ाती है
हल्की नीली रोशनी में
कमरा भर उठता है
एक औरत की गँध से

अनायास
वह पीने को बीयर
खाने को
मछली माँगती है

निरंतर सुलगती आहट में
कमरे का अँधेरा
पीसता है दाँत

फुसफुसाहटें
पिघलने लगती हैं
मोमबत्ती की तरह

और
अपने स्तनों के भार तले
दब जाती है औरत
खाली बोतलों में घुसकर
सीटियाँ बजाने लगती है
हवा
चौंककर
जग जाता है अँधेरा
और दीवार पर टँगी
नीग्रो औरत के गहरे लाल होंठों पर
सहसा चिपक जाती हैं
औरत की सिसकियाँ.