Last modified on 21 फ़रवरी 2009, at 00:38

यायावर पंछी / केशव

प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:38, 21 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव |संग्रह=भविष्य के नाम पर / केशव }} <Poem> उड़ने दो ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उड़ने दो
मन को
जुड़ने दो
फिर कोई कड़ी
कि चले कहाँ
छोड़कर
इस घड़ी

उड़ते-उड़ते ही देखेगा
फैले इस वन को
लायेगा गन्ध
सूरज से, वन से
घाटियों से खींच

थककर फिर उतर आयेगा
किसी डाल पर
प्रतीक्शा में
राह कोई
होगी खड़ी

चलेगा फिर झूमता
गाता हुआ
यायावर कोई गीत
पहुंचेगा जब द्वार पर
कहेगा झट से कोई
आ गये
देर तो कर दी बड़ी.