Last modified on 21 फ़रवरी 2009, at 00:46

एक अनुभूति / केशव

प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:46, 21 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव |संग्रह=भविष्य के नाम पर / केशव }} <Poem> जब से मैं...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जब से मैंने जाना है प्यार
एक आलोकधुले खालीपन में
खुल गया है द्वार
जहाँ न सुख है
न दुख
होता है सब कुछ
एक लय में
अपने-आप

पँख उगते हैं
उड़ जाता है मन
फूल गँध की तरह
कोई अदृश्य हाथ
बटोरते रहते हैं
सूरज की खिलखिलाहट
बदलते रहते हैं दृश्य
दुनिया के पर्दे पर

पर खालीपन में
चलती रहती है अकेली
एक राह
अकेलेपन से मुक्त
प्यार के ओर
खुले घर की ओर.