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दस्तूर / केशव

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यह भी न होता अगर
खोने-पाने का
दस्तूर
खामोशी
चूहे की तरह
कुतरती रहती आत्मा को

आवाजें
निकलकर बिलों से
महज़ भिनभिनाती
इर्द-गिर्द

यात्राएँ
पालतू कुत्ते की तरह
लोटती पाँवों पर

पूछतीं
कौन बीत गया
चौखट लाँघते-लाँघते
वक्त
या फिर तुम!