रोज़ ख़बरों में उभरना चाहते हैं
कोई हंगामा वो करना चाहते हैं
व्यक्तिगत उद्देश्य लेकर चन्द लोग
सार्वजनिक संदर्भ बनना चहते हैं
बाँट कर फिर शीशियाँ तेज़ाब की
वो हमारे घाव भरना चाहते हैं
वो जो मेरा ख़ून पीते आए हैं
मेरे बच्चों को निगलना चाहते हैं
कौन धक्के दे रहा है भीड़ में
मुद्दतों से हम संभलना चाहते हैं
इस जगह पैबन्द ही पैबन्द हैं
हम ये पैराहन बदलना चाहते हैं