उठो!
मेरी आँखों से देखो
शहर का
बाँबी के टीले में बदलना
सरसराती सड़कों का
केंचुए-सा ऐंठना
सरकती हुई भीड़ का
चींटियों की कतार हो जाना
उठो!
मेरी आँखों से देखो
बन्द होती खिड़कियों में
बाल्मीकि की अनझिप आँखों का अनायास झपकना
अभी पहर भर बीता
ज़िंदा था शहर
रस्सी कूद रहा था
मुझे देख
मेरा हाल पूछा था
कौन मुझसे पहले ही
दे गया खबर
या शहर ने देख लिया किसी खिड़की से
बंद दरवाज़ा लोहे के ताले में बन्द
ठंडा इन्कार
दफ़न हुई संभावना
किसी मोड़ पर मुड़ती पीठ
कैसे बाँबी का टीला हो गया सहसा
झूला झूलता--
हमदर्द शहर।