करीब रह कर भी दूर की बात करते हैं जनाब
आसान काम को भी मुश्किल बनाते हैं जनाब
झाड़ते हैं अंगरेजी देख कर हमें फटेहाल
रह-रह कर टाई पर हाथ फेरते हैं जनाब
खूबसूरत देख नशीली मुस्कान फेंकते हैं
बाबू देख त्यौरियाँ चढा़ते हैं जनाब
जन्माष्टमी को कुरता सिल्की पहन जाते मन्दिर
नेकर पहन जागिंग करते हैं जनाब
सहुलियत के अनुसार नित बनाते हैं टूर
दफ्तर तो हमेशा लेट जाते हैं जनाब
दूसरों की तरक्की देख जलते भुनते हैं
काम के बदले भुना मुर्गा खाते हैं जनाब
दूसरों की गलती देख लगते हैं गुर्राने
बीबी के सामने सहम जाते हैं जनाब
गली के कुत्तों को मारते हैं लात
अफसरों के आगे दुम हिलाते हैं जनाब
जाम के सरूर में छेड़ते हैं पुराने राग
सुबह ही हरि को भजने लगते हैं जनाब
भगवान की तरह वे बिलकुल अलग-अलग
रूपों और स्वरूपों मे नजर आते हैं जनाब।