Last modified on 28 फ़रवरी 2009, at 09:58

मौत से बात / सौरभ

प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:58, 28 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सौरभ |संग्रह=कभी तो खुलेगा / सौरभ }} <Poem> ए मौत तुम व...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ए मौत तुम वैसी नहीं हो
जैसी दिखती हो
तुम तो शांति का हो ऐसा अथाह सागर
जिसमें कुछ पल डूब कर
हम फिर पाते नवजीवन
ए मौत माना कि तुम से
जंग नहीं हो सकती मेरी
मित्रता तो है
तभी तो
मैं यहाँ बैठा
तुझ पर लिखने की
कर रहा हूँ ज़ुर्रत।