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प्रार्थनाएँ / सौरभ

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प्रार्थनाएँ करते अच्छे नहीं लगते कवि
मन्दिर जाते भी
शायर जाया करते थे मयखाने
दरबार में रहते थे वीर रस के कवि
(अब गरीब रस के रहते हैं)
कभी धर्मी हुए
कभी अधर्मी
कभी अति रसिक
कभी विद्रोही
आखिर क्या चाहते हैं लोग
कवि क्या हो
क्या न हो।