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समागम / कैलाश वाजपेयी

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सभी कुछ बदलता है
      अपनी रफ़्तार से
सिर्फ़ नदी ही नहीं
पहाड़ भी
चूर-चूर हो कर बहता है
नीचे
नदी की छाती से लगा हुआ.