Last modified on 10 मार्च 2009, at 18:45

रामलाल क फगुवा / भोजपुरी

अनूप.भार्गव (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:45, 10 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=कैलाश गौतम }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=भोजपुरी }} <poem> पहिले ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

   ♦   रचनाकार: कैलाश गौतम

पहिले पहिले फगुवा खेलै रामलाल ससुरारी चललैं
रुपया प‍इसा कपड़ा लत्ता कै के खूब तैयारी चललैं
लेहलैं नया सरौता, बटुआ, कत्था, खड़ी सोपारी लेहलैं
मेहर खातिर साबुन, पौडर, साया, ब्लाउज, सारी लेहलैं
अपने खातिर लुंगी, जूता, बीड़ी अउर सलाई लेहलैं
कई दुकानी चीख-चीख के आधा किलो मिठाई लेहलैं
हाथ गाल पर फेरै लगलन सोचै अ‍उर विचारै लगलन
आस पास सैलून कहाँ हौ चारो ओर निहारै लगलन
बनल ठनल एक औरत ल‍उकल खोंखैं अ‍उर खंखारै लगलन
इसकूटर पर ममा देख‍इलन बढ़के ममा पुकारै लगलन
नाहीं सुनलैं ममा भीड़ में नाहीं त बतियवले होतन
पुछले होतन हाल घरे क आपन हाल बतवले होतन
नाँहीं-नाँहीं लाख कहित हम तब्बौ चाह पियवले होतन
अपने इसकूटर पर हम्मैं बस अड्डा पहुँचवले होतन
सुनले हई शहर में मम्मा मामी नई लियायल ह‍उअन
बड़की मामी गांव रहैले ओकरे पर गुस्सायल ह‍उअन
रामलाल अब सरसमान कुल झोरा में सरियावै लगलन
साबुन पौडर लुंगी जूता खोंसै अ‍उर दबावै लगलन
बस से चली कि रेकसै अच्छा जोड़ै अ‍उर दहावै लगलन
सोझैं खाली रेकसा ल‍उकल ’हे रेकसा’ गोहरावै लगलन
बस से जाये क मतलब हौ पैदल ढेर चलै के होई
रेकसा से सीधे दुआर पर कत्तौं ना उतरै के होई
का हो रेकसा पूरे चलबा सोचा मत बस बोला जनला
रेकसोवाला हँस के कहलस लेला उड़नखटोला जनला
एतना जल्दी तोहके पूरे अब क‍इसे पहुँचाई हम
हमहूँ हई अदमिये मालिक गरुड़ देवता नहीं हम
ज‍इसे त‍इसे घंटा भर में रेकसा पार शहर के निकलल
चारों ओरी जाम बेचारा चढ़ के कहीं उतर के निकलल
मुँह पर डूबत बेर देख के रामलाल घबराये लगलन
रेकसावाले पर रह रह के पिन्नाये भन्नाये लगलन
एसे तेज चली ना हमसे जल्दी हो त खुदै चलावा
आजिज आ के रामलाल तब कहलन अच्छा ब‍इठा आवा
बारी-बारी दूनों जाने बइठै अ‍उर चलावै लगलन
एतना गड़बड़ रस्ता सरवा रामलाल गरियावै लगलन
पाहुन अ‍इलैं पाहुन अ‍इलैं घर द‍उरल अगवानी खातिर
केहू तोसक तकिया खातिर केहू मीठा पानी खातिर
रामलाल क मेहर अपने भ‍उजी से बतियावत ह‍उवै
पैदल त ई चलै न जानै अस सुकुआर बतावत ह‍उवै
रेकसावाला मुसकियात हौ रामलाल त हाँफत ह‍उवैं
गौर से उनके सब देखत हौ ऊहो सब के भाँपत ह‍उवैं
हँस के बोलल चाहत हउवन लेकिन हँसी न आवत ह‍उवै
अ‍इसैं मिलै सवारी मालिक रेकसावान मनावत ह‍उवै
घर में चाह पियै के खातिर रामलाल बलवावल गइलन
निखरहरै खटिया पर बिच्चे अंगना में बईठावल ग‍इलन
भरमूंहे सब रंग लगवलस जमके भूत बनावल ग‍इलन
साली करै चिकारी सटके सरहज गावै गारी बबुआ
बबुई त ससुरारी ग‍इलिन तू अ‍इला ससुरारी बबुआ
रामलाल निखरहरै खटिया फोंय फोंय फुफ्कारै लगलन
हमरे नियर चलावा रेकसा सपनै में ललकारै लगलन॥