Last modified on 10 मार्च 2009, at 19:14

मनोहरताको मानो ऐन / तुलसीदास

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:14, 10 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }}<poem> मनोहरताको मानो ऐन। स्यामल गौर किस...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मनोहरताको मानो ऐन।
स्यामल गौर किसोर पथिक दोउ सुमुखि! निरखि भरि नैन॥
बीच बधू बिधु-बदनि बिराजत उपमा कहुँ कोऊ है न।
मानहुँ रति ऋतुनाथ सहित मुनि बेष बनाए है मैन॥
किधौं सिंगार-सुखमा सुप्रेम मिलि चले जग-जित-बित लैन।
अद्भुत त्रयी किधौं पठई है बिधि मग-लोगन्हि सुख दैन॥
सुनि सुचि सरल सनेह सुहावने ग्राम-बधुन्हके बैन।
तुलसी प्रभु तरुतर बिलँबे किए प्रेम कनौडे कै न ?