Last modified on 10 मार्च 2009, at 23:33

पावस रितु बृन्दावनकी / बिहारी

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:33, 10 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बिहारी |संग्रह= }}<poem> पावस रितु बृन्दावनकी दुति द...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पावस रितु बृन्दावनकी दुति दिन-दिन दूनी दरसै है।
छबि सरसै है लूमझूम यो सावन घन घन बरसै है॥१॥
हरिया तरवर सरवर भरिया जमुना नीर कलोलै है।
मन मोलै है, बागोंमें मोर सुहावणो बोलै है॥२॥
आभा माहीं बिजली चमकै जलधर गहरो गाजै है।
रितु राजै है, स्यामकी सुंदर मुरली बाजै है॥३॥
(रसिक) बिहारीजी रो भीज्यो पीतांबर प्यारीजी री चूनर सारी है।
सुखकारी है, कुंजाँ झूल रह्या पिय प्यारी है॥४॥