Last modified on 12 मार्च 2009, at 18:21

एक बार / राजुला शाह

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:21, 12 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजुला शाह |संग्रह=परछाईं की खिड़की से / राजुला ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बह जाने देना
उड़ जाने देना
अपने आप को
एक बार
तुम भी।

गुब्बारे-सा
हवा के बुलबुले-सा
हल्का होगा तुम्हारा मन
और कहीं भी जा सकेगा
बिला रोक-टोक
फिर-
प्रेम से इन्तज़ार में
इन्तज़ार से
मौन में
मौन से
निपट शून्य में
और तुम्हें लगेगा,
सबसे ताकतवर हो तुम
ऊपर और ऊपर
और ऊपर
उठते हुए....