Last modified on 15 मार्च 2009, at 10:18

रोज़नामचा / कैलाश वाजपेयी

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:18, 15 मार्च 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हड्डियाँ
उसकी भी तो उसी रंग की थीं
जैसी सभी की होती हैं
खून भी उसी रंग का
जिस रंग का सबका
होता है
तुमने अभी जिसे
गोली से मारा है
उसकी सिर्फ़ एक ही ग़लती थी
वह ग़रीब

कातर तार-तार था

          सामूहिक से अलग
          झुका हुआ अपनी
          निजी प्रार्थना में
          पुलिस की शिनाख़्त से लगता है
          उसका नाम
          शायद फ़रीद था