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अर्थ / हेमन्त जोशी

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जब गेंहूँ सा पिसता हो आदमी
मौसम की बाते हैं बेमानी
धुँए सा उठ रहा हो चिमनी से
जब हर मज़दूर
तब कोई गीत न गाओ

नए बिम्बों में
पुराने अर्थ खोज रहे हैं हम
लगातार
और नया अर्थ
छुपा हुआ है अब तक
वहीं पसीने की गंध में