Last modified on 23 मार्च 2009, at 17:15

तलाशी / मनोहर बाथम

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:15, 23 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोहर बाथम |संग्रह= }} <Poem> आमने-सामने के मकानों में...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आमने-सामने के मकानों में
एक एनकाउंटर
वो मरने पर आमादा
मुझे लड़ने को करता मज़बूर

रातभर ज़ोर-आजमाईश
दिन भी आधा गया
एक आतंकी मारने की क्या ख़ुशी?
जब मेरा अपने बेटे-सा
शहीद हुआ ’भंवर’

आतंकी के पर्स की तलाशी से
कुछ सौ-सौ के नोट,
दो उर्दू में लिखे ख़त,
एक पुराना ब्लैक एण्ड व्हाइट में
बुजुर्ग बाप और अंधी माँ का फ़ोटो
दूसरा रंगीन शायद माशूक का

’भंवर’ का पर्स भी

मुझे भेजना था
बाक़ी सामान के साथ
उसके पर्स में भी
यही सब कुछ मिला
बस, माशूक की जगह
फ़ोटो में उसकी बीबी के साथ
दो मासूम बच्चे
और एक आधा लिखा ख़त था