हर चौथे रोज़ ही ही दीखती थी
दो तीन बरस के बच्चे के साथ
डॉक्टर से गिड़गिड़ाती
बच्चे के बोलने के इलाज के लिए
’गूंगा’ लफ़्ज उसे अच्छा नहीं लगता
माँ की तरह डॉक्टर भी
उम्मीदों के साथ
कि कभी तोतली आवाज़ से सही
निकलेगा ’अम्मी’
कल की ही तो बात है
उस ज़ालिम के बम से
चीख़ों से सारी बस्ती गूँजी
कहते हैं पहली और आख़िरी बार
गूंगा भी ’अम्मी’ पुकारते
चीख़ा