Last modified on 23 मार्च 2009, at 18:50

फागुनी दोहे / अनूप अशेष

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:50, 23 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनूप अशेष }} <poem> घेर रही है दिन उगे, अलसायी-सी बाँह...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

घेर रही है दिन उगे, अलसायी-सी बाँह।
जैसे आई धूप हो, गुलमोहर की छाँह।।

ओंठों लाली पान की, सांसों केसर रंग।
बेल पत्र पर हैं लिखे, भीतर के अनुबंध।।

पिया हाथ अंजुरी जुड़ी, ज्यों केवड़े का फूल।
भाग जुड़े दिन मोह के, पग पग महकी धूल।।

कनुप्रिया की गोद में, कालिंदी तट धूप।
सरसों मल कर आएगा, श्याम रंग में भूप।।

आने लगी मुंडेर पर, चिठ्ठी जैसी शाम।
पता डाकिया पूछता, लेकर अपना नाम।।