'हम होंगे क़ामयाब एक दिन’
यह ’एक दिन’
आशा के आकाश में टंगा
वह छलावा है
जिससे ठगे जा रहे हैं हम
हर बार, हर दिन
क़ामयाब उछालते हैं
यह नारा
और हमें
दिखलाते हैं सब्ज़बाग़
कामयाब होने का किसी दिन
क़ामयाबी भविष्य में नहीं
इसी वक़्त है
और है, इसी दिन