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सूखा समुद्र / बुद्धिलाल पाल
अनिल जनविजय
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सवाल ही नहीं उठता
कभी वहाँ
रहा होगा समुद्र
रहा होगा तो
हट गया होगा
उसके उठते
स्वार्थों को देखकर