Last modified on 29 मार्च 2009, at 07:04

संस्कार / हरिओम राजोरिया

Bharatbhooshan.tiwari (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:04, 29 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिओम राजोरिया |संग्रह= }} <Poem> खाना खाते वक्त गिर ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


खाना खाते वक्त
गिर पड़ता है मुँह का कौर
पता नहीं कौन भूखा है ?
अपनी संस्कारजन्य पीड़ा
परेशान करती है

अभावों को रौंदता हुआ
घाटी तो चढ़ आया
पर बार-बार देखता हूँ पीछे
बार-बार होता हूँ उदास।