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पड़ोस / राग तेलंग

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यह बेहद क्रूर समय है
जब विश्व-बंधुत्व की बातें की जा रही हों
तब हम हमारे ठीक पड़ोस के संबंध से शर्मसार हैं

चीज़ों को हथियाने की होड़ की दौड़ में शामिल हम दोनों
अब थककर चूर हो चुके हैं
मगर देख नहीं पा रहे एक दूसरे को
बीच में उठी दीवार के कारण

कहाँ तो पड़ोसी बनने के शुरुआती क्रम में
थोड़ा-सा दूध और
थोड़ी-सी चीनी लेने-देने से विकसित हुए थे संबंध
और आज
कहाँ आ खड़े हैं हम कि
एक-दूसरे का चेहरा तक देखना गवारा नहीं

क्या अब सब कुछ इतना निरापद हो चुका कि
रात-बेरात संकट आ जाने का कोई भय भी नहीं,
ज़रा भी दरकार नहीं किसी की ?
क्या ज़रूरत का वक़्त लोप हो चुका ?

मंच पर सबसे मधुर संबंध बनाने के तरीके बतलाता
वह मशहूर जनसंपर्ककर्मी बेहद अकेला है भीतर से

सब उसे सुन रहे हैं
मगर उसकी
अपने पड़ोसी से बोलचाल
बंद है आजकल ।