Last modified on 3 अप्रैल 2009, at 19:34

उन दिनों / राग तेलंग

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:34, 3 अप्रैल 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राग तेलंग }} <Poem> यह उन दिनों की बात है जब समाचार सू...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

यह उन दिनों की बात है
जब समाचार सूचित कम करते मनोरंजन ज़्यादा
तब ज्ञान को लतियाकर सूचना-तंत्र के सिद्ध
अपने वैश्विक-ग्राम की संकल्पना का डंका पीट रहे थे

यह मूर्तियों के भंजन और विचारधाराओं के स्खलन का दौर था
जिसमें सबसे ज़्यादा जागरूक स्कूली बच्चे थे
जिन्हें सुरक्षित सेक्स के सारे तरीके कंठस्थ थे और
बहनजी टाइप टीचरों और गुरुजियों में
इस विषय पर अभी भी एकमतता नहीं हो पाई थी

यह रिमोट से संचालित युग था जिसमें सोचने के लिए अवकाश ही न था
घुड़दौड़ के पुराने शौकीनों की जगह उन्होंने ले ली थी
जो पश्च सौंदर्य की मीमांसा मीडिया में करते अघाते नहीं थे

यह समय रसोई घरों के मॉड्युलर किचन में तब्दील हो चुकने के बाद
नई स्वाद तंत्रिकाओं के उगने और
दादी-माँ के अचार के पुराने नुस्खों के फ्री में भी न बिक पाने के अफ़सोस का था

यह वह समय था जिसमें पुरातन के नाम पर सुनाई जाती
अविश्वसनीय गाथाओं के सामने समर्पण करना अनिवार्य होता
आधुनिक गल्प की शैलियों को
तब कई भ्रमित-आत्ममुग्ध एवं मनोरंजक लेखकों को लगता
ऐसे कठिन समय में समाज का चित्रण करना उनका लेखकीय दायित्व है
सो वे झुंड के झुंड में गोष्ठियों में बैठकर
एक दूसरे के ज़ख़्मों को सहलाते फिर घर जाकर सो जाते

इसी समय
सब अफीमची
धर्म के पक्ष में आतंकवाद के हिमायती बनकर उभरे और
खेलने लगे अपने लोगों के बीच
सर्वे या जनमत संग्रहनुमा कोई एक खेल

ऐसे समय में हर समय की तरह एक कौम के चुनिंदा लोग
दूसरी कौम के लोगों को डराने के नित नए उपाय करते
भय इस तरह शक्ति भरने का काम करता
उस फ़्यूल टैंक में जिससे लोकतंत्र का कारोबार चलता

इस समय तक आते-आते
तमाम सामाजिक गतिविधियाँ वोट बैंक हो जाने को अभिशप्त थीं
तब वोट डालना नित्यकर्म से निवृत्त होने के बाद का नि:श्वास होता

यह उन दिनों की बात है
जब हमारे पूर्वज इक्कीसवीं सदी को
सबसे ज्यादा उन्नत और प्रगतिशील समय बता रहे थे
लेकिन यह एक विचार बीज का फॉसिल बताता है कि
यह बचा रहा सिर्फ किसी एक अनाम कवि की कविता में
भविष्य को व्याख्यायित करता
अपने समय में अलक्षित और उपेक्षित रहने के बावजूद ।