Last modified on 3 अप्रैल 2009, at 20:21

प्रतीक्षा / राग तेलंग

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:21, 3 अप्रैल 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राग तेलंग }} <Poem> प्रतीक्षा के दौरान होती है परीक्...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

प्रतीक्षा के दौरान
होती है परीक्षा
जो धैर्य लेता है
विविध विषयों के बारे में
हमारे सोचने के समय

तयशुदा जगह की तुलना में
ज़्यादा समय तो
ऐसे स्थानों से होते हुए गुज़रता है
जहाँ हमें रुकना ही नहीं होता

वक़्त की चौड़ी बेंच पर
एक छोटी-सी जगह मिलने की ख़्वाहिश में
गुज़ार देते हैं कई घड़ियां

प्रतीक्षा के बाद
प्रतीक्षा को ही आना होता है
यह सिलसिला
जब तक बना रहता है
उतना ज़्यादा फैलता है आसमान
उतनी ही लंबी होती हैं बाहें
उतनी ही दूर
आगे खिसकती हैं
मिलने की संभावनाएँ ।