Last modified on 5 अप्रैल 2009, at 21:58

तैयारी / गिरिराज किराडू

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:58, 5 अप्रैल 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गिरिराज किराडू }} <Poem> आसमान ने पूरी कर ली थी बरसने ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आसमान ने पूरी कर ली थी
बरसने की तैयारी
धरती ने पूरा खिलने की

देह ने पूरी कर ली थी
तैयारी उड़ने की
आत्मा ने मुक्ति की पूरी

तभी गोली लगी आँख में
जिसमें नहीं थी पूरी
उजड़ने की तैयारी