Last modified on 10 अप्रैल 2009, at 19:10

लगता था / व्योमेश शुक्ल

198.190.28.152 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 19:10, 10 अप्रैल 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=व्योमेश शुक्ल }} हमें लगता था कि सबकुछ को ठीक करन...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हमें लगता था कि सबकुछ को ठीक करने के लिए 

बातचीत के चालूपन में वाक्य विन्यास को क़ायदे से सँभाल लिया जाय पैदल या स्कूटर पर चलते समय रीढ़ की हड्डी को भरसक सीधा रक्खें अशांत और अराजक सूचनाओं को भी लें धैर्यपूर्वक फ़र्जी व्होट डालने पोलिंग बूथ में घुस रहे शोहदों को चीख़-चिल्लाकर भगा दें अतीत की घटनाएँ औऱ उनके संदर्भ याद अकारण भी उल्लसित हो पाएँ आदतन ख़ुशामद न करें अपने-अपने कारणों से विकल लोगों के साथ एक मानवीय व्यवहार कर सकें इतना काफ़ी होगा

लेकिन, फिर बहुत समय बीत गया औऱ अब लगता है कि हमें ऐसा लगता था