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दीवार पर / व्योमेश शुक्ल

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गोल, तिर्यक, बहकी हुईं सभी संभव दिशाओं और कोणों में जाती हुईं या वहाँ से लौटती हुईं बचपन की शरारतों के नाभिक से निकली आकृतियाँ

दीवार पर लिखते हुए शरीफ बच्चे भी शैतान हो जाते हैं

थोड़े सयाने बच्चों की अभिव्यक्ति में शामिल वाक्य जैसे ‘रमा भूत है’, इत्यादि हल्दी, चाय और बीते हुए मंगल कार्यों के निशान कदम-कदम पर गहरे अमूर्तन जहाँ एक जंगली जानवर दौड़ रहा है दूसरा चीख रहा तीसरा लेटा हुआ है असंबद्ध विन्यास

एक बिल्कुल सफेद दीवार का सियापा इस रंगी पुती दीवार के कोलाहल में मौजूद है ग्रीस, मोबिल, कोलतार और कुछ ऐसे ही संदिग्ध दाग़ जिनके उत्स जिनके कारणों तक नहीं पहुँचा जा सकता बलगम पसीना पेशाब टट्टी वीर्य और पान की पीक के चिह्न चूने का चप्पड़ छूटा है काई हरी से काली हो रही है

इसी दीवार के साये में बैठा हुआ था एक आरामतलब कवि यहीं बैठकर उसने लिखा था कि कोई कवि किसी दीवार के साये में बैठा हुआ होगा