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पाप / फ़रोग फ़रोखज़ाद

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अठखेलियाँ करती हवा में मैंने अपने कपड़े उतारे
कि नहा सकूँ कलकल बहती नदी में
पर स्तब्ध रात ने बाँध लिया मुझे अपने मोहपाश में
और ठगी-सी मैं
अपने दिल का दर्द सुनाने लगी पानी को।

ठंडा था पानी और थिरकती लहरों के साथ बह रहा था
हल्के से फुसफुसाया और लिपट गया मेरे बदन से
और जागने-कुलबुलाने लगीं मेरी चाहतें

शीशे जैसे चिकने हाथों से
धीरे-धीरे वह निगलने लगा अपने अंदर
मेरी देह और रूह दोनों को ही।

तभी अचानक हवा का एक बगूला उठा
और मेरे केशों में झोंक गया धूल-मिट्टी
उसकी साँसों में सराबोर थी
जंगली फूलों की पगला देने वाली भीनी ख़ुशबू
यह धीरे-धीरे भरती गई मेरे मुँह के अंदर।

आनंद में उन्मत्त हो उठी मैंने
मूँद लीं अपनी आँखें
और रगड़ने लगी बदन अपना
कोमल नई उगी जंगली घास पर
जैसी हरकतें करती है प्रेमिका
अपने प्रेमी से सटकर
और बहते हुए पानी में
धीरे-धीरे मैंने खो दिया अपना आपा भी
अधीर, प्यास से उत्तप्त और चुंबनों से उभ-चुभ
पानी के काँपते होंठों ने
गिरफ़्त में ले लीं मेरी टांगें
और हम समाते चले गए एक दूसरे में…
देखते – देखते
तृप्ति और नशे से मदमत्त
मेरी देह और नदी की रूह
दोनों ही जा पहुँचे – गुनाह के कटघरे में।


मीतरा सोफिया के अंग्रेजी अनुवाद से हिन्दी में अनुवाद यादवेन्द्र