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घोंघा / के० सच्चिदानंदन

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तुम कहाँ घिरे हुए हो
तुम्हारा घर तुम्हारी पीठ पर
और तुम्हारे नन्हें सींग सतर्क
किस यात्रा के लिए

गीली लकड़ी पर फूल
काई के सफ़ेद आशिक
शिथिल दार्शनिक
मनुष्यों के उन्मत्त संसार की जो खिल्ली उड़ाता है
क्या ये तुम्हारा बाहर है जिसे हम देखते हैं
या तुम्हारा भीतर ?

तुम हमारे लड़ाई-झगड़ों को चुनौती देते हो
और त्वचा के नीचे तक उतर गए हमारे भेदभाव को
तुम जामे रहते हो हमारे दिनों और यादों पर
शुरू से आखिर तक
लेकिन हम
हम प्यार तक हड़बड़ी में करते हैं
हम दुनिया बदलने के लिए भी भागमभाग करते रहते हैं

तुम कहते हो हमसे : समय अंतहीन है
धीमे-धीमे तुम फुसफुसाते हो
तुम्हारी चिपचिपी चेतावनी
चुपचाप आह्वान करती है
उस संसार का जिसे हमने गंवा दिया है
एक पृथ्वी जो धीरे-धीरे चक्कर लगाती है
एक सूर्य जो धीरे-धीरे उगता है
एक चंद्रमा जो धीरे-धीरे पृथ्वी की परिक्रमा करता है
धीरे बारिश
धीरे संगीत
धीरे जीवन
धीरे मृत्यु


मूल मलयालम से स्वयं कवि द्वारा अंग्रेजी में अनूदित. अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद: व्योमेश शुक्ल