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जगद्विनोद / पद्माकर

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फूलन के खंभा पाट-पटरी सुफूलन की,
फूलन के फँदना फँदे हैं लाल डोरे में ।
कहै 'पद्माकर' बितान तने फूलन के
फूलन की झालरें त्यों झूलतीं झकोरे में ।
फूल रही फूलन सुफूल फुलवारी तहाँ,
फूलई के फरस फबे हैं कुंज कोरे में ।
फूलभरी फूलजरी फूलझरी फूलन में, ।
फूलई सी झूलत सुफूल के हिंडोरे में ।।