एक सुर
दो सुर, सुर के पंछियों का झुण्ड
झुण्ड के झुण्ड सुर बसेरे बनाते हैं
मन-शिविर में
आवाजाही जारी रहती है
शब्द का पताका तूफान
कुछ लोग गीतों के जरिए
सामने आते हैं
कण्ठरुद्घ प्रकाश
कण्ठहीन कण्ठ से
अनगिनत अन्तराएं
आबद्घ होता है नाद ब्रह्म
एक सुर दो सुर
सुर के पंछियों का झुण्ड
शून्य में उड़ता है
विसर्जन की प्रतिमा की तरह