Last modified on 21 अप्रैल 2009, at 01:11

पाथेय / श्रीप्रकाश शुक्ल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:11, 21 अप्रैल 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीप्रकाश शुक्ल }} <poem> आओ बैठो साथ पिया बालू के ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आओ
बैठो
साथ पिया

बालू के कण हैं अपने ही ।

नहीं यहाँ दुनिया का चक्कर
पलकों में पग धर आओ री
यह है रेत नदी बन भीतर
शीतलता सी उतरो री !

तट है सूना-सूना-सा
लहरों में अब उतराओ भी
जिन हलचल को अब तक बांधे
खोल उन्हें, इतराओ भी !

इतना उमड़ो इतना घुमड़ो
यह तट उभरे बन साक्षी ,जी
विरह का मारा जब भी गुज़रे
पाये पाथेय, संभाले जी !


रचनाकाल : 10.03.2008


{