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तुमसे ही / हरानन्द

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नाभिनालबद्ध
चिरकाल सम्बद्ध
अस्मिताओं का
अवसान कर दो
बहुत भटका
बहुत भूला
अब लक्ष्य का
सन्धान कर दो

कब से जुड़ा हूँ
क्यों जुड़ा हूँ
प्रश्नों की भीड़ में
मनमीत
मैं खड़ा हूँ
कुछ बोलकर
कुछ खोलकर
समाधान कर दो

क्या कहूँ
किससे कहूँ
और कितनी
पीड़ा सहूँ
दर्द के हिमखण्ड को
पिघलने का वरदान दे दो

मण्डित हुआ
खण्डित हुआ
पुरस्कृत हुआ
दण्डित हुआ
श्याम निर्झर को
मिले सागर
कुछ ऐसा विधान कर दो

सर्वत्र हो
सर्वज्ञ हो
ज्ञान हो तुम
ज्ञेय हो
गूढ़ हो तुम
मूढ़ हूं मैं
क्षुद्रता अपनी समझ लूँ
आज ऐसा ज्ञान दे दो

मंच हो
नेपथ्य हो
सारगर्भित कथ्य हो
भूमिका अपनी निभाकर
स्वर्ण-रथ पर चल सकूं
संभ्रान्ति के इस दौर में
सत्य का
संज्ञान दे दो

आज तुमसे क्या कहूँ
जो भी चाहो
दान दे दो।