Last modified on 26 अप्रैल 2009, at 20:12

विश्वस्त गवाही / अभिज्ञात

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:12, 26 अप्रैल 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अभिज्ञात }} <poem> मेरी सुस्ताई हुई आँखों ने भाँप लि...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मेरी सुस्ताई हुई आँखों ने
भाँप लिए हैं
अपने सही मोर्चे
विश्वस्त है अब मेरी गवाही
कि सड़क से
कोढ़ की तरह फूटती है सीढ़ी।