Last modified on 26 अप्रैल 2009, at 22:22

जननी जन्मभूमि / सुभाष मुखोपाध्याय

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:22, 26 अप्रैल 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=सुभाष मुखोपाध्याय }} Category:बांगला <poem> मैं माँ क...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: सुभाष मुखोपाध्याय  » जननी जन्मभूमि

 
मैं माँ को बहुत प्यार करता था
कभी अपने मुँह से नहीं कहा मैंने।
टिफ़िन के पैसे बचाकर
कभी-कभी ख़रीद लाता था सन्तरे
लेटे-लेटे माँ की आँखें डबडबा जाती थीं
अपने प्यार की बात
कभी भी मुँह खोलकर मैं माँ से नहीं कह सका।
हे देश, हे मेरी जननी
मैं तुमसे कैसे कहूँ!
जिस धरती पर पैरों के बल खड़ा हुआ हूँ -
मेरे दोनों हाथों की दसों उँगलियों में
उसकी स्मृति है।
मैं जिन चीज़ों को छूता हूँ
वहाँ पर हे जननी तुम्हीं हो
मेरी हृदयवीणा तुम्हारे ही हाथों बजती है।
हे जननी! हम डरे नहीं
जिन लोगों ने तुम्हारी ज़मीन पर
अपने क्रूर पंजे पसारे हैं
हम उनकी गर्दन पकड़कर
सरहद के पार खदेड़ देंगे।
हम जीवन को अपनी तरह से सजा रहे थे --
सजाते रहेंगे।
हे जननी! हम डरे नहीं
यज्ञ में बाधा पड़ी थी इसलिए नाराज़ हैं हम
हे जननी
मुँह से बिना कुछ कहे
हम अनथके हाथों से
प्यार की बातें कह जाएंगे।


मूल बंगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी