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गाँव खेतों-क्यारियों में बोलता है / ऋषभ देव शर्मा

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गाँव, खेतों-क्यारियों में बोलता है चीख में, सिसकारियों में बोलता है

पड़ गईं कितनी दरारें, आज नक्शा तीन-रंगी धारियों में बोलता है

आपका बाजार लुटना है जरूरी मांस - ज़िंदा, लारियों में बोलता है


दूध मत छीनो, दिखाकर झुनझुना यूँ पालना किलकारियों में बोलता है

आपका चेहरा रँगेगा खून मेरा आपकी पिचकारियों में बोलता है